शनिवार, अगस्त 01, 2015

तुम्हारी मुस्कराहट

देखना जिंदगी भी पानी के साथ मिल
जर्रे जर्रे में एक दिन मिल जाएगी
और फिर वहीँ दूर तक तुम्हारी मुस्कराहट
नमी में घुल कर समां में बिखर जाएगी
तुम मौसम हो अब तो ये मुझ को भी
खबर है मगर देखना बेखुदी तेरी एक दिन
तुझ कों ही शाम ढले मय्यसर हो जाएगी
आती है रात हर शाम के बाद, ये तो शायद
हर काफ़िर कों भी पता है, पर शायद अब से
वो रात कुछ और तन्हा हो जाएगी, मगर
जिंदगी की ये नेमत है की वो फिर
बारिश बन कर कुछ धूल बनती यादों को
पानी में बहा ले जाएगी .............................

सोमवार, जुलाई 27, 2015

सपने

आज नयी सुबह फिर मेरे आँगन में आई है
आज फिर आँखों से उसकी मुस्कराहट देखो
प्यालियो के उठते धुंए में कैसे सिमट आई है
खुशबू भोर कि लिपटी हैं इस घर के हर कोने में
और कुछ मैंने भी सपनों की लुबान सुलगाई है
तारे समेटने है अभी आँगन से मुझे पर क्यों
ये सुबह की खुशबू तेरे हाथों से मेरे चेहरे पर
किसी छोटी सी दुनिया की तरह सिमट आई है
सच कितने खूबसूरत होते है सुबह के सपने
क्या हुआ अगर ये सिर्फ सपने ही हैं .............

रविवार, जुलाई 12, 2015

चलो

आओ आज शाम फिर उस राह पर चले
अपने पुराने सपनों से मिले और उसी
झील के किनारे सूरज को ढलता देखे
आओ आज शाम फिर एक दुसरे का
हाथ थामे उस पगडंडी पर चले और
चाय कि प्याली के धुंए को फिर से
दोनों साथ में साँझा करे .................




सोमवार, जून 29, 2015

आज


आज फिर कुछ सन्दर्भ हरे हो गये
बारिश क़ी बौछार के साथ खवाब भी
धुल कर नए हो गए, देखो तुम भी
आज फिर कुछ सन्दर्भ हरे हो गए
तुम्हारी यादें कुछ और करीब से
टकरा कर मुझे महका गयी और
वो नयी दूब जिंदगी से टकरा गयी
तमाम राहों के साथ जो चलती थी
अक्सर हर शाम साथ हमारे; देखो
जुगनुओं क़ी रौशनी से वो भी अब
हरी भरी हो गयी, कैसी बारिश है ये
जिंदगी जिसमे फिर से भरी हो गयी





गुरुवार, जून 25, 2015

मुझे लगा

काश तुम समझ सकते वहां दूर
मेरी हर बात के पीछे छिपी बात
काश अपनी भागती जिंदगी के बीच
तुम देख पाते मेरी हर एक कोशिश
तुम्हारी यादों से निकलने की और फिर
उनमे उलझने की मेरी हर नाकामी
तुमने कुछ पाया ये मुझे पता है
पर टूट गया करीब मेरे तुम्हे उसकी
आवाज भी न पहुंची होगी उस पार
बस कसक इतनी ही, मुझे लगा था
शायद तुम अब समझने लगे हो

सोमवार, जून 15, 2015

बस

बस इतना सा ही सपना है
कि रास्ते तुमसे मिलकर
खुद भी राही बन जाये
तुम्हारे सफ़र के और
मंजिल हाथ बढ़ा कर खुद
ही थाम ले तुम्हे हर बार
बस इतना सा सपना है
तुम्हारे दायरे की लकीरें
हर पल बढ़ती रहें और
कहीं न कहीं फिर भी
मुझे छूती रहें बस ...
इतना सा सपना है कि
सपने तुम्हारे महकते रहें
और तुम्हारी राहों में
सिर्फ खुशियों के रंग
हर दिन भोर से बिखरते रहें
बस इतना सा सपना है.....

मंगलवार, जून 09, 2015

खुशबू

सरपट भागते रास्तो पर क्यों
जिंदगी मुझे ठहरी नज़र आती है
जब मेरे पहलु में आकर हौले से
तेरी यादें समां जाती है .......
जानती हूँ मैं नहीं हो तुम
करीब मेरे तो फिर क्यों
तकिये की सिलवटो में
तुम्हारी खुशबू महक जाती है.....

मंगलवार, अप्रैल 28, 2015

तुम

तुम आओगे मेरे पास फिर से
मुझ को पता है तो फिर ये
आँख क्यों नम हो जाती है
तेरे जाने के बाद भी ये
उदासी की डोर क्यों मेरे
और करीब हो जाती है
रस्ते नापती हूँ मैं अक्सर
आसमान से सटी इमारतों में
या देखती हूँ उदास आँखों से
समुन्दर को तभी लहरे
तेरी याद दिला जाती हैं
और आँखों के किनारे से
कुछ बूंदे टपका जाती हैं
तुझे याद करते हुए और
ढलते सूरज को देखते हुये
इस इंतजार में की शायद
एक दिन तुम वापिस आओगे
और मेरी मुस्कराहट फिर से
मुझे दे जाओगे .............

इंतजार में हूँ मैं तुम्हारे

मंगलवार, अप्रैल 14, 2015

तुम्हारा मौन











तुम्हारा मौन देखो मुझे
प्यार से सहलाता है
कभी माथे से सटी लटे हटाता है, और
अगले ही पल उन लटों को
प्यार तले और उलझाता है ........
तुम्हारा मौन देखो मुझे
किस तरह तुम्हारे
प्यार में भिगो जाता है और
फिर अचानक प्यार की आंच में
अपने और करीब ले जाता है
तुम्हारा मौन देखो मुझे
कैसे किताब सा पढ़ लेता है
और फिर हर पन्ने पर
अपना नाम लिख जाता है
न जाने क्या है इस सवाल में
तुम्हारा मौन देखो कैसे
मौन से भी अपने
मुझे निरुतर कर जाता है

शुक्रवार, अप्रैल 10, 2015

चलो


चलो हम अपने निशान खोजे
और धागे में सपनों को पिरों दे
या मोतिये की सफ़ेद कलियों से
अपना तकिया महका दें और
सुबह की खुशबू में एक दुसरे को
उस तकिये की सिलवटों पर ढूंढे
मगर कैसा को अगर हम
इन सबसे अलग पानी सा
खुद को एक दुसरे में मिला दे
और महकते तकिये को अपनी
खुशबू में कुछ और लिपटा दें .....

रविवार, मार्च 29, 2015

सैलाब

पानी अपने निशान ढूंढ़ता है अक्सर
शाम की कुछ आवाजों में और फिर
दिल हो कर दरवेश मेरा गिनता है
कदमों की ही हर एक आहट
धुआं प्याली से उठता है ऐसे
दूर सैलाब के बादल बनते है जैसे
मैं फिर कहती हूँ तुमसे
चलो इन सब से दूर कही और
समेट कर चले सारे सिरे
जिंदगी काटने के लिए आखिर
इस सिरे के बाद कुछ और नए
छोर तो ढूंढ़ने हैं सभी को - कभी न कभी

शनिवार, मार्च 21, 2015

नाराज़ है ये रात

नाराज़ है आज ये रात
और इस रात की तमाम बात
तू खामोश रह कर मुझे
शायद राख कर जायेगा
मगर फिर भी रहना तू
इसी तरह खामोश रात भर
याद तेरी रात के हर पल
मेरे तकिये पर आएगी
और याद मेरी तुझे भी
कुछ तो सुलगायेगी मगर
तू रहना खामोश रात भर
क्योंकिं कहना तेरी फितरत नहीं
और चुप रहना तेरी है आदत
तो शायद इसी तरह जिंदगी
की ये खुबसूरत रात बीत जाएगी
मगर तुझे क्यों कहू मैं ये सब
क्योंकि बोलने से प्यार को
तेरी चुप रहने की फितरत
शायद बदल जाएगी



















शनिवार, मार्च 14, 2015

वो बोता रहा तमाम रात

वो बोता रहा तमाम रात
अपने सारे स्पर्श
वो पकढ़ती रही पानी में उसकी परछाई
उसने उकेरे ढेरो निशाँ अपने और
वो संभालती रही उसकी धड़कने
वो जलाता रहा अलाव रात भर
वो देती रही अपने प्यार का कोयला
आँखों ने उसकी करी थी बातें हजार
और वो पिरोती रही बंद आँखों में
उन दोनों का साथ, उन दोनों के खवाब



पता नहीं ?

पता नहीं, वो रिश्तों की नजाकत को
कभी शायद समझ पायेगा या नहीं
पता नहीं वो कभी सिमट कर फिर से बिखरने आएगा
जैसे बरसते है काले बादल लगातार बार-बार
क्या वो कभी फिर से बरस पायेगा ?
शायद वक़्त भी चादर उढ़ेल देगा
यादों की परछाई पर, मगर शायद
सालों बाद मुझे याद करके वो
एक पल के लिए सही मुस्कुराएगा

मंगलवार, मार्च 03, 2015

चेहरे के रंग


चेहरे के पीछे छुपे हैं कुछ सपने
और सपनों के साथ उभरती तस्वीरें
तस्वीरों में छुपी हैं कुछ यादें
और यादों में लिपटी हैं बातें
बातों में उलझते नए धागे
धागों से बंधते कुछ रिश्ते और
रिश्तों से पनपते नए बंधन
बंधन से बंधते कुछ अपने
और अपनों के संग डोर से
बंधे कुछ सांझे सपने, कभी
चेहरे के रंगों में झलकते और कभी
चेहरे की लकीरों में छुपते
और फिर रंगों के साथ हवा में बिखरते
सुनहरे टिमटिमाते नादाँ से सपने

गुरुवार, जनवरी 29, 2015

अरिष्टा


उसकी मुस्कान मुझमें अक्सर झलकती है
उसकी हंसी मुझ से मिलकर कुछ और खनकती है
आँखे भी कुछ कुछ मिलती है हमारी
और उनमे सिमटी गहराई भी; अथाह
मानों सपनों ने मेरे अपना ही कोई प्रतिरूप धरा है
राहें मेरी रूकती है हर दिन उस पर ही जा कर
नन्हा हाथ थामे उसका, जिंदगी के रंगों से देखो , कैसे
जिंदगी के हर दिन एक और नयी तस्वीर बनती है

गुरुवार, जनवरी 15, 2015

फिर एक बार


मुझे फिर एक बार
द्वन्द को तिरोहित करना है
और देना है सपनों को एक लम्बा अन्तराल
पढ़ाव की चेष्टा करता है मन
पर डरता है , कहीं
ये मौसमी जुगनू की चमक तो नहीं
या मेरी ही कोई सनक तो नहीं
एक रिक्त सा कोना खाली
आज फिर भरना चाहता है
न जाने कैसी आहट है ये
जिसे सुन मन अपने सिर्फ अपने
गगन में उढ़ना चाहता है ........

इस शाम


चलो इस शाम सूरज को देखे
मैं उसे बोली और फिर
उसे हथेली पर हलके से उतारे
या उसे नन्ही गेंद की तरह
इक दूसरे की और फैंके
और मुस्कुरा दें और
इस बहाने कुछ और बातें
आँखों से सुना दे.............

मगर उसने हलके से मुझे देखा
फिर जाती हुई रेल को
और बोला कैसा होगा अगर
इसे तुम्हारे माथे पर सजा दें
और जिन्दगी भर एक दुसरे का हाथ थामे
हर दिन को सूरज के इंतजार में बिता दें.....

बुधवार, जनवरी 14, 2015

सपने


मेरे तुम्हारे हम सभी के
कुछ सपने है रेत के हर जर्रे में
हर तरफ बिखरते या
मोतिया के फूलों में महकते
पकढ़ने लगती हूँ तो
हथेली मैली सी लगती है
लगता है मानों ग्रहण
हाथ की लकीरों में उतर आया है
सच कितना मुश्किल होता है
सपनों को कुरेदना और
अचानक हाथ की उंगलियो के
बीच उनका छोर पा लेना