गुरुवार, जनवरी 15, 2015

इस शाम


चलो इस शाम सूरज को देखे
मैं उसे बोली और फिर
उसे हथेली पर हलके से उतारे
या उसे नन्ही गेंद की तरह
इक दूसरे की और फैंके
और मुस्कुरा दें और
इस बहाने कुछ और बातें
आँखों से सुना दे.............

मगर उसने हलके से मुझे देखा
फिर जाती हुई रेल को
और बोला कैसा होगा अगर
इसे तुम्हारे माथे पर सजा दें
और जिन्दगी भर एक दुसरे का हाथ थामे
हर दिन को सूरज के इंतजार में बिता दें.....

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