शनिवार, अप्रैल 22, 2017

मेरा अस्तित्व

बूँद पकड़ती हूँ मैं ऊँगली के सिरे पर
फिर निहारती हूँ उसे चमकते हुए
प्यार भी ऐसा ही है तुमसे लिपटा
तुमसे मिलता और तुमसे पनपता
और फिर मेरी आँखों में समाता
और दिन बदलते, साल ढलते, देखो
वो सामने से आता और मुस्करा कर
मेरी बाँहों में आकर लिपट जाता
और मेरे अस्तित्व को कैसे
आकाश सा बड़ा कर जाता.......

खिढ़की के पास



खिढ़की के पास वक़्त कुछ गहराया है
देखो कैसे तुम्हारी यादों को मैंने
अपनी उंगलियों से सुलझाया है
फिर बारिश की बूंदों को मोती सा
उनमे कतरा कतरा सजाया है
बूंदों का भी अपना एक सार है
बड़े से आसमान में सिमटा
तुम्हारी बाहों सा विस्तृत
मुझ से तुमसे मिलता और
फिर बूँद में सिमटा ये भी
बेल सा पनपता हमारा संसार है

शुक्रवार, अप्रैल 14, 2017

मेरे जाने के बाद



मेरे जाने के बाद देखना तुम
कुछ निशान पढ़े होंगे मेरे
यहाँ वहां बिखरे हवा में, मगर
तुम पकढ़ नहीं पाओगे उन्हें
वो भी पानी होंगे मेरी तरह
मेरे जाने के बाद देखना तुम
उस तकिये पर फिर भी
कुछ सिलवटे होंगी, मेरी
खुशबू में महकती और
नादाँ से तुम से लिपटती
जिंदगी दर जिंदगी यूँ ही
बीत जाएगी मगर, देखना
अक्सर मेरी परछाई हौले से
तेरे आगोश में गुनगुनायेगी
फिर आँखों को तुम्हारी
अपने होठों से छू जाएगी
देख लेना तुम मेरे जाने के बाद