शनिवार, अप्रैल 22, 2017

खिढ़की के पास



खिढ़की के पास वक़्त कुछ गहराया है
देखो कैसे तुम्हारी यादों को मैंने
अपनी उंगलियों से सुलझाया है
फिर बारिश की बूंदों को मोती सा
उनमे कतरा कतरा सजाया है
बूंदों का भी अपना एक सार है
बड़े से आसमान में सिमटा
तुम्हारी बाहों सा विस्तृत
मुझ से तुमसे मिलता और
फिर बूँद में सिमटा ये भी
बेल सा पनपता हमारा संसार है

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