रविवार, मार्च 29, 2015

सैलाब

पानी अपने निशान ढूंढ़ता है अक्सर
शाम की कुछ आवाजों में और फिर
दिल हो कर दरवेश मेरा गिनता है
कदमों की ही हर एक आहट
धुआं प्याली से उठता है ऐसे
दूर सैलाब के बादल बनते है जैसे
मैं फिर कहती हूँ तुमसे
चलो इन सब से दूर कही और
समेट कर चले सारे सिरे
जिंदगी काटने के लिए आखिर
इस सिरे के बाद कुछ और नए
छोर तो ढूंढ़ने हैं सभी को - कभी न कभी

शनिवार, मार्च 21, 2015

नाराज़ है ये रात

नाराज़ है आज ये रात
और इस रात की तमाम बात
तू खामोश रह कर मुझे
शायद राख कर जायेगा
मगर फिर भी रहना तू
इसी तरह खामोश रात भर
याद तेरी रात के हर पल
मेरे तकिये पर आएगी
और याद मेरी तुझे भी
कुछ तो सुलगायेगी मगर
तू रहना खामोश रात भर
क्योंकिं कहना तेरी फितरत नहीं
और चुप रहना तेरी है आदत
तो शायद इसी तरह जिंदगी
की ये खुबसूरत रात बीत जाएगी
मगर तुझे क्यों कहू मैं ये सब
क्योंकि बोलने से प्यार को
तेरी चुप रहने की फितरत
शायद बदल जाएगी



















शनिवार, मार्च 14, 2015

वो बोता रहा तमाम रात

वो बोता रहा तमाम रात
अपने सारे स्पर्श
वो पकढ़ती रही पानी में उसकी परछाई
उसने उकेरे ढेरो निशाँ अपने और
वो संभालती रही उसकी धड़कने
वो जलाता रहा अलाव रात भर
वो देती रही अपने प्यार का कोयला
आँखों ने उसकी करी थी बातें हजार
और वो पिरोती रही बंद आँखों में
उन दोनों का साथ, उन दोनों के खवाब



पता नहीं ?

पता नहीं, वो रिश्तों की नजाकत को
कभी शायद समझ पायेगा या नहीं
पता नहीं वो कभी सिमट कर फिर से बिखरने आएगा
जैसे बरसते है काले बादल लगातार बार-बार
क्या वो कभी फिर से बरस पायेगा ?
शायद वक़्त भी चादर उढ़ेल देगा
यादों की परछाई पर, मगर शायद
सालों बाद मुझे याद करके वो
एक पल के लिए सही मुस्कुराएगा

मंगलवार, मार्च 03, 2015

चेहरे के रंग


चेहरे के पीछे छुपे हैं कुछ सपने
और सपनों के साथ उभरती तस्वीरें
तस्वीरों में छुपी हैं कुछ यादें
और यादों में लिपटी हैं बातें
बातों में उलझते नए धागे
धागों से बंधते कुछ रिश्ते और
रिश्तों से पनपते नए बंधन
बंधन से बंधते कुछ अपने
और अपनों के संग डोर से
बंधे कुछ सांझे सपने, कभी
चेहरे के रंगों में झलकते और कभी
चेहरे की लकीरों में छुपते
और फिर रंगों के साथ हवा में बिखरते
सुनहरे टिमटिमाते नादाँ से सपने