पता नहीं, वो रिश्तों की नजाकत को
कभी शायद समझ पायेगा या नहीं
पता नहीं वो कभी सिमट कर फिर से बिखरने आएगा
जैसे बरसते है काले बादल लगातार बार-बार
क्या वो कभी फिर से बरस पायेगा ?
शायद वक़्त भी चादर उढ़ेल देगा
यादों की परछाई पर, मगर शायद
सालों बाद मुझे याद करके वो
एक पल के लिए सही मुस्कुराएगा
कभी शायद समझ पायेगा या नहीं
पता नहीं वो कभी सिमट कर फिर से बिखरने आएगा
जैसे बरसते है काले बादल लगातार बार-बार
क्या वो कभी फिर से बरस पायेगा ?
शायद वक़्त भी चादर उढ़ेल देगा
यादों की परछाई पर, मगर शायद
सालों बाद मुझे याद करके वो
एक पल के लिए सही मुस्कुराएगा
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