सोमवार, जून 26, 2017

जिंदगी

उसे जिद है आजमाने की और
मेरी आदत है अक्सर रूठ जाने की
कशमकश हो मानों प्यार आजमाने कि
और उस से ज्यादा, रूठे को मनाने की
राहें दर राहें गुजरती है आज कल
यूँ ही मेरी, इंतजार में उसके
पास आने के और फिर दूर जाने के
मगर डरता है दिल हौले से
कि जिंदगी कहीं थम न जाये
डोर कोई बंध न जाये कहीं
इस हँसी के मेल में, और
इंतजार में लिपटे अनकहे, अनजाने
तुझसे लिपटे ख्यालों के खेल में

मेरा नाम

तुझे पाने के बाद देखा
मैंने पीछे , तो खुद को
भूल आई थी, और
जाती है जहाँ तक नज़र
मेरी आज कल देख
कैसी तन्हाई है
तुझे मुठी में पकढ़ने
की कोशिश में देख
में खुद को खो बैठी हूँ
कैसी उदासी है छायी
देख तेरे जाने के बाद
अब मैं दरवेश बन बैठी हूँ
रास्ते और भी लम्बे
हो गए हैं अब और
भीढ़ के बीच तन्हाई भी
किस उम्र की सजा कहूँ
मैं इसे कि अपना नाम
ही भूल बैठी हूँ ...........

कभी कभी

जाने कहाँ खो गए हो तुम
तलाशती हूँ मैं तुम्हे आजकल
दीवानों की तरह हर पल
आसमान की लकीरों पर
तुम ही नज़र आते हो
जाने क्या हुआ है

इन आँखों को जिन्हें
तुम खामोश करे जाते हो
दिल की राहें भी तलाशती है तुम्हे
दरवेश बनकर पल दर पल
मगर तुम जाने क्यों
मौसम की तरह

बदले बदले से नज़र आते हो
जाते जाते काश तुम मुझे
इतना तो बता जाते कि
कि कभी कभी समंदर के
बीच भी जमीन उग आती है
मगर फिर किनारे के सिरे
हौले हौले एक दिन फिर से
समंदर में मिल जाती है












सुबह


वही सुबह रौशनी की उजली तारें, वही दहलीज से आता एक और दिन
कुछ अलग है तो उसकी छोटी सी हथेली और हँसतीआँखों के सवाल
जिंदगी को खूबसूरत बनाते और मेरे दायरे को आसमान बुलाते .......

रिश्ते

नाराज़ ही सही रिश्ते मगर पास कहे अनकहे वादे ही तो हैं
दिल कि बस्ती में बनते फिर जहन में साल दर साल
बरगद सा पनपते या बारिश के साथ आँखों से बरसते
ये कुछ अपनों और कुछ बेगानों कि यादें ही तो हैं .........



जिंदगी


जिंदगी पानी है हाथ में पकढ़ोगे तो बिखर जाएगी, खुशबू की तरह समेटोगे तो
हर दिन हर सुबह की रौशनी में मिल तुम्हारी राहों में बिखर जाएगी .........

मोती

ये आँखों में जो आंसू हैं, जो समझो तो मोती है
अगर समझो तो सिर्फ पानी है .......
 

नरम धूप

सुबह की नरम धूप तकिये के पास कुछ और शोख हो कर मुस्कुराती हैं
जब जब मेरे घर की खिढ़की से रात को वो चांदनी दबे पाँव आती है ....

शनिवार, अप्रैल 22, 2017

मेरा अस्तित्व

बूँद पकड़ती हूँ मैं ऊँगली के सिरे पर
फिर निहारती हूँ उसे चमकते हुए
प्यार भी ऐसा ही है तुमसे लिपटा
तुमसे मिलता और तुमसे पनपता
और फिर मेरी आँखों में समाता
और दिन बदलते, साल ढलते, देखो
वो सामने से आता और मुस्करा कर
मेरी बाँहों में आकर लिपट जाता
और मेरे अस्तित्व को कैसे
आकाश सा बड़ा कर जाता.......

खिढ़की के पास



खिढ़की के पास वक़्त कुछ गहराया है
देखो कैसे तुम्हारी यादों को मैंने
अपनी उंगलियों से सुलझाया है
फिर बारिश की बूंदों को मोती सा
उनमे कतरा कतरा सजाया है
बूंदों का भी अपना एक सार है
बड़े से आसमान में सिमटा
तुम्हारी बाहों सा विस्तृत
मुझ से तुमसे मिलता और
फिर बूँद में सिमटा ये भी
बेल सा पनपता हमारा संसार है

शुक्रवार, अप्रैल 14, 2017

मेरे जाने के बाद



मेरे जाने के बाद देखना तुम
कुछ निशान पढ़े होंगे मेरे
यहाँ वहां बिखरे हवा में, मगर
तुम पकढ़ नहीं पाओगे उन्हें
वो भी पानी होंगे मेरी तरह
मेरे जाने के बाद देखना तुम
उस तकिये पर फिर भी
कुछ सिलवटे होंगी, मेरी
खुशबू में महकती और
नादाँ से तुम से लिपटती
जिंदगी दर जिंदगी यूँ ही
बीत जाएगी मगर, देखना
अक्सर मेरी परछाई हौले से
तेरे आगोश में गुनगुनायेगी
फिर आँखों को तुम्हारी
अपने होठों से छू जाएगी
देख लेना तुम मेरे जाने के बाद

मंगलवार, मार्च 14, 2017

एक और कहानी


चेहरे के पीछे छुपे हैं कुछ सपने
और सपनोंके साथ उभरती कुछ तस्वीरें
तस्वीरों में छुपी हैं कुछ यादें
और यादों में लिपटी हैं कुछ बातें
बातों में उलझते कुछ धागे और
धागों से बंधते कुछ रिश्ते
रिश्तों से पनपते नए बंधन
बंधन से बंधते कुछ अपने
और अपनों के संग डोर से
बंधे कुछ सांझे सपने, कभी
चेहरे के रंगों में झलकते और कभी
चेहरे की लकीरों में छुपते
सुनहरे टिमटिमाते नादाँ से सपने

शुक्रवार, मार्च 03, 2017

फिर से


चलो फिर से कुछ यादों को पिरोये
और मोतिया के फूलों की तरह
तकिये के सिरहाने रख कर
उनकी खुशबू को सहलाए
आँखों की गहराई में ढूंढे
या सिलवटो में समेटे
कितना कुछ है बिखरा हवा में
और कितने लम्बे हैं रास्ते
मगर उम्मीद की लौ है रोशन
कि फासले बनते है अक्सर
खुशबू की तरह बिखरने के लिए
नए रास्तों पर चल कर फिर से
तुमसे मिलने के लिए ..........

गुरुवार, मार्च 02, 2017

पानी


क्या कभी पानी को हथेली में उतरा है
और फिर उसे हौले से संभाला है
ताकि एक भी बूँद उसकी बिखर न जाये
जिंदगी भी कुछ ऐसी ही है पानी जैसी
कभी उस सुनहरे कांच के गिलास में सिमटी
तो कभी समुन्दर सी अथाह
खेलती है जिंदगी अक्सर पानी सा ही
कभी ठहराव तो कभी सैलाब
तलाश है लम्बी बहुत मगर
उम्मीद अभी भी है बाकी मुझे
कि पानी की भी एक कहानी है
मेरी तुम्हारी, हम सबकी जिंदगी से
हर दिन गुजरती एक रेल की रवानी है...........
और धुएं से लिखती जाती कि
इस पानी की भी कहानी है