शुक्रवार, मार्च 03, 2017

फिर से


चलो फिर से कुछ यादों को पिरोये
और मोतिया के फूलों की तरह
तकिये के सिरहाने रख कर
उनकी खुशबू को सहलाए
आँखों की गहराई में ढूंढे
या सिलवटो में समेटे
कितना कुछ है बिखरा हवा में
और कितने लम्बे हैं रास्ते
मगर उम्मीद की लौ है रोशन
कि फासले बनते है अक्सर
खुशबू की तरह बिखरने के लिए
नए रास्तों पर चल कर फिर से
तुमसे मिलने के लिए ..........

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