गुरुवार, मार्च 02, 2017

पानी


क्या कभी पानी को हथेली में उतरा है
और फिर उसे हौले से संभाला है
ताकि एक भी बूँद उसकी बिखर न जाये
जिंदगी भी कुछ ऐसी ही है पानी जैसी
कभी उस सुनहरे कांच के गिलास में सिमटी
तो कभी समुन्दर सी अथाह
खेलती है जिंदगी अक्सर पानी सा ही
कभी ठहराव तो कभी सैलाब
तलाश है लम्बी बहुत मगर
उम्मीद अभी भी है बाकी मुझे
कि पानी की भी एक कहानी है
मेरी तुम्हारी, हम सबकी जिंदगी से
हर दिन गुजरती एक रेल की रवानी है...........
और धुएं से लिखती जाती कि
इस पानी की भी कहानी है


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