सोमवार, जून 29, 2015

आज


आज फिर कुछ सन्दर्भ हरे हो गये
बारिश क़ी बौछार के साथ खवाब भी
धुल कर नए हो गए, देखो तुम भी
आज फिर कुछ सन्दर्भ हरे हो गए
तुम्हारी यादें कुछ और करीब से
टकरा कर मुझे महका गयी और
वो नयी दूब जिंदगी से टकरा गयी
तमाम राहों के साथ जो चलती थी
अक्सर हर शाम साथ हमारे; देखो
जुगनुओं क़ी रौशनी से वो भी अब
हरी भरी हो गयी, कैसी बारिश है ये
जिंदगी जिसमे फिर से भरी हो गयी





गुरुवार, जून 25, 2015

मुझे लगा

काश तुम समझ सकते वहां दूर
मेरी हर बात के पीछे छिपी बात
काश अपनी भागती जिंदगी के बीच
तुम देख पाते मेरी हर एक कोशिश
तुम्हारी यादों से निकलने की और फिर
उनमे उलझने की मेरी हर नाकामी
तुमने कुछ पाया ये मुझे पता है
पर टूट गया करीब मेरे तुम्हे उसकी
आवाज भी न पहुंची होगी उस पार
बस कसक इतनी ही, मुझे लगा था
शायद तुम अब समझने लगे हो

सोमवार, जून 15, 2015

बस

बस इतना सा ही सपना है
कि रास्ते तुमसे मिलकर
खुद भी राही बन जाये
तुम्हारे सफ़र के और
मंजिल हाथ बढ़ा कर खुद
ही थाम ले तुम्हे हर बार
बस इतना सा सपना है
तुम्हारे दायरे की लकीरें
हर पल बढ़ती रहें और
कहीं न कहीं फिर भी
मुझे छूती रहें बस ...
इतना सा सपना है कि
सपने तुम्हारे महकते रहें
और तुम्हारी राहों में
सिर्फ खुशियों के रंग
हर दिन भोर से बिखरते रहें
बस इतना सा सपना है.....

मंगलवार, जून 09, 2015

खुशबू

सरपट भागते रास्तो पर क्यों
जिंदगी मुझे ठहरी नज़र आती है
जब मेरे पहलु में आकर हौले से
तेरी यादें समां जाती है .......
जानती हूँ मैं नहीं हो तुम
करीब मेरे तो फिर क्यों
तकिये की सिलवटो में
तुम्हारी खुशबू महक जाती है.....