सोमवार, जून 29, 2015

आज


आज फिर कुछ सन्दर्भ हरे हो गये
बारिश क़ी बौछार के साथ खवाब भी
धुल कर नए हो गए, देखो तुम भी
आज फिर कुछ सन्दर्भ हरे हो गए
तुम्हारी यादें कुछ और करीब से
टकरा कर मुझे महका गयी और
वो नयी दूब जिंदगी से टकरा गयी
तमाम राहों के साथ जो चलती थी
अक्सर हर शाम साथ हमारे; देखो
जुगनुओं क़ी रौशनी से वो भी अब
हरी भरी हो गयी, कैसी बारिश है ये
जिंदगी जिसमे फिर से भरी हो गयी





कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें