बूँद पकड़ती हूँ मैं ऊँगली के सिरे पर
फिर निहारती हूँ उसे चमकते हुए
प्यार भी ऐसा ही है तुमसे लिपटा
तुमसे मिलता और तुमसे पनपता
और फिर मेरी आँखों में समाता
और दिन बदलते, साल ढलते, देखो
वो सामने से आता और मुस्करा कर
मेरी बाँहों में आकर लिपट जाता
और मेरे अस्तित्व को कैसे
आकाश सा बड़ा कर जाता.......
फिर निहारती हूँ उसे चमकते हुए
प्यार भी ऐसा ही है तुमसे लिपटा
तुमसे मिलता और तुमसे पनपता
और फिर मेरी आँखों में समाता
और दिन बदलते, साल ढलते, देखो
वो सामने से आता और मुस्करा कर
मेरी बाँहों में आकर लिपट जाता
और मेरे अस्तित्व को कैसे
आकाश सा बड़ा कर जाता.......
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें