तुझे पाने के बाद देखा
मैंने पीछे , तो खुद को
भूल आई थी, और
जाती है जहाँ तक नज़र
मेरी आज कल देख
कैसी तन्हाई है
तुझे मुठी में पकढ़ने
की कोशिश में देख
में खुद को खो बैठी हूँ
कैसी उदासी है छायी
देख तेरे जाने के बाद
अब मैं दरवेश बन बैठी हूँ
रास्ते और भी लम्बे
हो गए हैं अब और
भीढ़ के बीच तन्हाई भी
किस उम्र की सजा कहूँ
मैं इसे कि अपना नाम
ही भूल बैठी हूँ ...........
मैंने पीछे , तो खुद को
भूल आई थी, और
जाती है जहाँ तक नज़र
मेरी आज कल देख
कैसी तन्हाई है
तुझे मुठी में पकढ़ने
की कोशिश में देख
में खुद को खो बैठी हूँ
कैसी उदासी है छायी
देख तेरे जाने के बाद
अब मैं दरवेश बन बैठी हूँ
रास्ते और भी लम्बे
हो गए हैं अब और
भीढ़ के बीच तन्हाई भी
किस उम्र की सजा कहूँ
मैं इसे कि अपना नाम
ही भूल बैठी हूँ ...........
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