सोमवार, जून 26, 2017

कभी कभी

जाने कहाँ खो गए हो तुम
तलाशती हूँ मैं तुम्हे आजकल
दीवानों की तरह हर पल
आसमान की लकीरों पर
तुम ही नज़र आते हो
जाने क्या हुआ है

इन आँखों को जिन्हें
तुम खामोश करे जाते हो
दिल की राहें भी तलाशती है तुम्हे
दरवेश बनकर पल दर पल
मगर तुम जाने क्यों
मौसम की तरह

बदले बदले से नज़र आते हो
जाते जाते काश तुम मुझे
इतना तो बता जाते कि
कि कभी कभी समंदर के
बीच भी जमीन उग आती है
मगर फिर किनारे के सिरे
हौले हौले एक दिन फिर से
समंदर में मिल जाती है












4 टिप्‍पणियां: