बुधवार, जनवरी 14, 2015

सपने


मेरे तुम्हारे हम सभी के
कुछ सपने है रेत के हर जर्रे में
हर तरफ बिखरते या
मोतिया के फूलों में महकते
पकढ़ने लगती हूँ तो
हथेली मैली सी लगती है
लगता है मानों ग्रहण
हाथ की लकीरों में उतर आया है
सच कितना मुश्किल होता है
सपनों को कुरेदना और
अचानक हाथ की उंगलियो के
बीच उनका छोर पा लेना

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