गुरुवार, जनवरी 29, 2015

अरिष्टा


उसकी मुस्कान मुझमें अक्सर झलकती है
उसकी हंसी मुझ से मिलकर कुछ और खनकती है
आँखे भी कुछ कुछ मिलती है हमारी
और उनमे सिमटी गहराई भी; अथाह
मानों सपनों ने मेरे अपना ही कोई प्रतिरूप धरा है
राहें मेरी रूकती है हर दिन उस पर ही जा कर
नन्हा हाथ थामे उसका, जिंदगी के रंगों से देखो , कैसे
जिंदगी के हर दिन एक और नयी तस्वीर बनती है

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