सोमवार, जुलाई 27, 2015

सपने

आज नयी सुबह फिर मेरे आँगन में आई है
आज फिर आँखों से उसकी मुस्कराहट देखो
प्यालियो के उठते धुंए में कैसे सिमट आई है
खुशबू भोर कि लिपटी हैं इस घर के हर कोने में
और कुछ मैंने भी सपनों की लुबान सुलगाई है
तारे समेटने है अभी आँगन से मुझे पर क्यों
ये सुबह की खुशबू तेरे हाथों से मेरे चेहरे पर
किसी छोटी सी दुनिया की तरह सिमट आई है
सच कितने खूबसूरत होते है सुबह के सपने
क्या हुआ अगर ये सिर्फ सपने ही हैं .............

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