मैं दूर तक देखती हूँ नीला सागर
और फिर हथेली को अपनी
फिर सोचती हूँ काश मैं
तुम्हारी मुस्कराहट को पानी बना देती
तुम्हारी मुस्कराहट को पानी बना देती
और हथेली में समेट कर
इसी समुन्दर मैं मिला देती
और हर शाम उसे देखती
समुन्दर के किनारे बैठ कर
नादाँ लहरों के साथ मिलकर
नादाँ लहरों के साथ मिलकर
खुद से दूर जाते हुआ
और फिर उसी बेखुदी से
उफनती लहरों के साथ मेरी
और सिर्फ मेरी तरफ आते....