गुरुवार, जून 09, 2016

मुस्कराहट


मैं दूर तक देखती हूँ नीला सागर
और फिर हथेली को अपनी
फिर सोचती हूँ काश मैं
तुम्हारी मुस्कराहट को पानी बना देती
और हथेली में समेट कर
इसी समुन्दर मैं मिला देती
और हर शाम उसे देखती
समुन्दर के किनारे बैठ कर
नादाँ लहरों के साथ मिलकर
खुद से दूर जाते हुआ
और फिर उसी बेखुदी से
उफनती लहरों के साथ मेरी
और सिर्फ मेरी तरफ आते....

रविवार, जून 05, 2016

कुछ भी नहीं बदला - सिर्फ तुम्हारे

कुछ भी नहीं बदला यहाँ पर
वही प्यालियों से उठता धुआं
और वही मैं हूँ इंतजार करती
कागज पर तुम्हारी बनाई लकीरों
से दरवेशों सी बात करती
समुन्दर अभी भी लहरों के साथ
हर शाम गुनगुनाता है और
आकर मेरे पैरों से लिपट जाता है
यादों की खुश्बू मुझ में समां कर
तुम्हारी याद कुछ और दिला जाती है
और आँखों के सिरे से कुछ बूंदे
मेरे अकेलेपन को नम कर जाती है
देखो जरा एक पल रुक कर तुम भी तो
कुछ भी नहीं बदला यहाँ पर
सिवा तुम्हारे.....और सिर्फ तुम्हारे

बुधवार, मई 04, 2016

तुम्हारी आँखें

मुझे याद आती हैं हर शाम
तुम्हारी वो आँखें, कभी
शरारत से मुस्कुराती तो
कभी दरवेश सा गुनगुनाती
सागर से गहरी वो दो
मुझ में समाती आँखें
याद करती हूँ अक्सर मैं
आँखों को तुम्हारी
इस भीढ़ की दुनिया में
अपनी पलके मूँद कर
और अपने ही सिरहाने
पा लेती हूँ वो आँखें
तुम्हारी वो दो बोलती आँखें

कुछ और

भीढ़ में मैंने खुद को कुछ बहलाया था
तुझसे और तेरी यादों से दूर जाने का
एक मनचला बहाना बनाया था
दूर तुमसे, पंछी की तरह उढ़ने
का छोटा सा सपना भी दिखाया था
कदम न जाने किन नयी राहों पर
चलते रहे तमाम दिन और तमाम रात
मैंने खुद को नए धागों में देख
किस कदर उलझाया था,
मगर कल शाम लौ तले देखा
तो खवाबों के सिरहाने तुम
वही थे मेरा इंतजार करते और
शाम ढले बाँहों में लेकर मुझे
उसी बेखुदी से प्यार करते.....

मंगलवार, अप्रैल 26, 2016

तुम्हारे निशान

मेरे कंधे के सिरे पर अभी भी निशाँ है तुम्हारे
और उंगलियों कि नरमी तुमसे मिलती
आँखे नादाँ सी करती हैं इंतजार और
दिल याद करता है तुम्हारा स्पर्श बार बार
क्यों याद आती है तुम्हारी ठगती आँखें
जबकि मुझ को भी पता है तुम हो मीलो दूर
मगर प्यार को नहीं पता दूरी क्या होती है
तुमसे मिलती और हवा में भुरती
सपनो के न मिलने कि मजबूरी क्या होती है
सोचती हूँ मैं काश मैं वक़्त पकढ़ लेती और
उसमे तुम्हे बांध कर सिरहाने रख लेती
ताकि खुशबू बिखरती रहे तुम्हारी
और तुम रमते रहो मुझ में ..............

सोमवार, अप्रैल 25, 2016

जिंदगी

आज सुबह फिर खोजे मैंने
सारे निशाँ उसके और मेरे
हाथ आये चंद धागे तुमसे बंधे
बटोरे फिर मैंने सारे ख़वाब और
बांधे काले तावीज़ मन्नत से बंधे
कही ख़वाब को भी नज़र न लगे
आखिर वही तो पास हैं मेरे
तुम्हारी धरोहर संजोये हुए
हर दिन की बात शाम हो जाती है
जिंदगी जो जलती थी शाम के
साये में रौशनी की तरह
देख तेरे जाने के बाद कैसे
आम सी हो जाती है................

रविवार, अप्रैल 10, 2016

तुम्हारी नज़र

देखी थी कल देर शाम ढले मैंने
हम दोनों के बीच पनपती तढ़प
खनकती हँसी के बीच आँखों की वो
अनकही सी, मेरे लिए तुम्हारी कसक
हसरते बचाती रही दामन चुपचाप
पयालियो की पैनी निगाहों से मगर
भुरती रही मुझ में वो तुम्हारी
मरमरी संगमरमर सी नजर
मानों नज़र को तुम्हारी अँधेरा
छिपाना आता है और फिर
चमकती रौशनी में मुझे चुराकर
खुद में मिलाना आता है .......

शुक्रवार, मार्च 25, 2016

पानी का अस्तित्व

मुझे हलके से आज फिर
याद आता रहा वो स्पर्श
अपना सा लगा था मुझे
वो अर्श, लेकिन अचानक
हवा न जाने क्यों रुखी थी
शायद समझ ही नहीं पाई वो
कैसा होता है दूर तक चांदनी सा
फैला जीवन का स्पर्श
आपको सहलाता और सवांरता
फिर करीने से बेल सा उकारता
सपनों का एक नया अर्थ, मानों
आपके आस्तित्व को किसी ने
पानी बना दिया और उसे एक दिन
समुन्दर में मिला दिया ताकि
हर दिन के साथ मिलता रहे
इस जिंदगी को एक नया अर्थ

सोमवार, मार्च 21, 2016

फिर न कहना

फिर न कहना तुम मुझे कि
वो पल रूठ कर चले गए
फिर न कहना तुम मुझे
कि होठ मिले बिना ही रह गए
हाथ थामना चाहते थे मेरा हाथ
तमाम रात मगर ख्याल
अँधेरे में चुपचाप मिल गए
फिर न कहना तुम मुझे
कि मेरा तिल तुम्हे मिला ही नहीं
जबकि हकीकत है ये कि
तुम उस तरफ पलट कर
आये ही नहीं
पानी में मिल जायेंगे
ये ख्याल साल दर साल
फिर न कहना आकर
कानों में मेरे कि वो साल
बिन बरसे ही निकल गए
देखो...............................
फिर न कहना तुम मुझसे



शुक्रवार, फ़रवरी 19, 2016

आवाज


तुम्हारी आवाज मुझ तक पहुँचती रही
मीलों दूर से तुम्हारी याद हाथ थामे मेरा
साथ साथ चलती रही और सहलाती रही,
पैरो के निशान नापती हूँ कभी मैं तो कभी
आवाज़ की गहराई को, शायद इस इंतजार में
कि आवाज़ अचानक एक दिन पास में
आकर थम जाएगी ठीक वैसे जैसे
समुन्दर किनारे शंख में समुंदर की
आवाज़ की गहराई समां जाती है ........

कल शाम


कल शाम पानी की लकीरों पर तस्वीर उभरती रही
और यादों की हांड़ी में कुछ और यादें पकती रही
चाँद चांदनी पिरोता रहा रात भर, मोतियों की तरह
और मैं खोजती रही तिनके घरोंदे के लिये
तुम्हारे और मेरे .....सपने
सिलवटे तकिये की दिलाती रही तुम्हारी याद कुछ और
और अँधेरा अकेले होने का अहसास
कितना बुरा होता है अँधेरा,
सच का अहसास दिला जाता है जो
इतनी शफक सच्चाई से .....................

रविवार, जनवरी 24, 2016

उस दिन




क्या तुमने उस दिन लहरों की आवाज सुनी थी
लहरों के साथ बहती किश्ती की राह चुनी थी
पता तुम्हे भी नहीं है; अपने ही रास्ते का तो
फिर दिखावा क्यों? किस्मत को समझने का
जबकि किस्मत को भी पता है लकीरों का खेल
और उसमे दिन पर दिन उलझता लहरों की रेल
मीलों लम्बे आसमान को नापती हूँ मैं
क्योकिं मुझे याद आता है अभी भी
शाम ढले उन लहरों का मेल



शुक्रवार, जनवरी 15, 2016

निमिटा


इस से पहले कि
रंग बिखरने से दूर क़ही
एक कोलाहल हो
जमीं पर पलों के बीच
अनकहा स्पंदन हो
मन का टूटना जरुरी सा
क्यों होता है
ताकि बरस पर बरस बीत जाएँ
उसे फिर याद करके
एक तार में पिरोने के लिए