शुक्रवार, फ़रवरी 19, 2016

कल शाम


कल शाम पानी की लकीरों पर तस्वीर उभरती रही
और यादों की हांड़ी में कुछ और यादें पकती रही
चाँद चांदनी पिरोता रहा रात भर, मोतियों की तरह
और मैं खोजती रही तिनके घरोंदे के लिये
तुम्हारे और मेरे .....सपने
सिलवटे तकिये की दिलाती रही तुम्हारी याद कुछ और
और अँधेरा अकेले होने का अहसास
कितना बुरा होता है अँधेरा,
सच का अहसास दिला जाता है जो
इतनी शफक सच्चाई से .....................

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