तुम्हारी आवाज मुझ तक पहुँचती रही
मीलों दूर से तुम्हारी याद हाथ थामे मेरा
साथ साथ चलती रही और सहलाती रही,
पैरो के निशान नापती हूँ कभी मैं तो कभी
आवाज़ की गहराई को, शायद इस इंतजार में
कि आवाज़ अचानक एक दिन पास में
आकर थम जाएगी ठीक वैसे जैसे
समुन्दर किनारे शंख में समुंदर की
आवाज़ की गहराई समां जाती है ........
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