सोमवार, मार्च 21, 2016

फिर न कहना

फिर न कहना तुम मुझे कि
वो पल रूठ कर चले गए
फिर न कहना तुम मुझे
कि होठ मिले बिना ही रह गए
हाथ थामना चाहते थे मेरा हाथ
तमाम रात मगर ख्याल
अँधेरे में चुपचाप मिल गए
फिर न कहना तुम मुझे
कि मेरा तिल तुम्हे मिला ही नहीं
जबकि हकीकत है ये कि
तुम उस तरफ पलट कर
आये ही नहीं
पानी में मिल जायेंगे
ये ख्याल साल दर साल
फिर न कहना आकर
कानों में मेरे कि वो साल
बिन बरसे ही निकल गए
देखो...............................
फिर न कहना तुम मुझसे



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें