भीढ़ में मैंने खुद को कुछ बहलाया था
तुझसे और तेरी यादों से दूर जाने का
एक मनचला बहाना बनाया था
दूर तुमसे, पंछी की तरह उढ़ने
का छोटा सा सपना भी दिखाया था
कदम न जाने किन नयी राहों पर
चलते रहे तमाम दिन और तमाम रात
मैंने खुद को नए धागों में देख
किस कदर उलझाया था,
मगर कल शाम लौ तले देखा
तो खवाबों के सिरहाने तुम
वही थे मेरा इंतजार करते और
शाम ढले बाँहों में लेकर मुझे
उसी बेखुदी से प्यार करते.....
तुझसे और तेरी यादों से दूर जाने का
एक मनचला बहाना बनाया था
दूर तुमसे, पंछी की तरह उढ़ने
का छोटा सा सपना भी दिखाया था
कदम न जाने किन नयी राहों पर
चलते रहे तमाम दिन और तमाम रात
मैंने खुद को नए धागों में देख
किस कदर उलझाया था,
मगर कल शाम लौ तले देखा
तो खवाबों के सिरहाने तुम
वही थे मेरा इंतजार करते और
शाम ढले बाँहों में लेकर मुझे
उसी बेखुदी से प्यार करते.....
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