बुधवार, मई 04, 2016

तुम्हारी आँखें

मुझे याद आती हैं हर शाम
तुम्हारी वो आँखें, कभी
शरारत से मुस्कुराती तो
कभी दरवेश सा गुनगुनाती
सागर से गहरी वो दो
मुझ में समाती आँखें
याद करती हूँ अक्सर मैं
आँखों को तुम्हारी
इस भीढ़ की दुनिया में
अपनी पलके मूँद कर
और अपने ही सिरहाने
पा लेती हूँ वो आँखें
तुम्हारी वो दो बोलती आँखें

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