रविवार, जून 05, 2016

कुछ भी नहीं बदला - सिर्फ तुम्हारे

कुछ भी नहीं बदला यहाँ पर
वही प्यालियों से उठता धुआं
और वही मैं हूँ इंतजार करती
कागज पर तुम्हारी बनाई लकीरों
से दरवेशों सी बात करती
समुन्दर अभी भी लहरों के साथ
हर शाम गुनगुनाता है और
आकर मेरे पैरों से लिपट जाता है
यादों की खुश्बू मुझ में समां कर
तुम्हारी याद कुछ और दिला जाती है
और आँखों के सिरे से कुछ बूंदे
मेरे अकेलेपन को नम कर जाती है
देखो जरा एक पल रुक कर तुम भी तो
कुछ भी नहीं बदला यहाँ पर
सिवा तुम्हारे.....और सिर्फ तुम्हारे

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