मंगलवार, अप्रैल 26, 2016

तुम्हारे निशान

मेरे कंधे के सिरे पर अभी भी निशाँ है तुम्हारे
और उंगलियों कि नरमी तुमसे मिलती
आँखे नादाँ सी करती हैं इंतजार और
दिल याद करता है तुम्हारा स्पर्श बार बार
क्यों याद आती है तुम्हारी ठगती आँखें
जबकि मुझ को भी पता है तुम हो मीलो दूर
मगर प्यार को नहीं पता दूरी क्या होती है
तुमसे मिलती और हवा में भुरती
सपनो के न मिलने कि मजबूरी क्या होती है
सोचती हूँ मैं काश मैं वक़्त पकढ़ लेती और
उसमे तुम्हे बांध कर सिरहाने रख लेती
ताकि खुशबू बिखरती रहे तुम्हारी
और तुम रमते रहो मुझ में ..............

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