आज सुबह फिर खोजे मैंने
सारे निशाँ उसके और मेरे
हाथ आये चंद धागे तुमसे बंधे
बटोरे फिर मैंने सारे ख़वाब और
बांधे काले तावीज़ मन्नत से बंधे
कही ख़वाब को भी नज़र न लगे
आखिर वही तो पास हैं मेरे
तुम्हारी धरोहर संजोये हुए
हर दिन की बात शाम हो जाती है
जिंदगी जो जलती थी शाम के
साये में रौशनी की तरह
देख तेरे जाने के बाद कैसे
आम सी हो जाती है................
सारे निशाँ उसके और मेरे
हाथ आये चंद धागे तुमसे बंधे
बटोरे फिर मैंने सारे ख़वाब और
बांधे काले तावीज़ मन्नत से बंधे
कही ख़वाब को भी नज़र न लगे
आखिर वही तो पास हैं मेरे
तुम्हारी धरोहर संजोये हुए
हर दिन की बात शाम हो जाती है
जिंदगी जो जलती थी शाम के
साये में रौशनी की तरह
देख तेरे जाने के बाद कैसे
आम सी हो जाती है................
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