देखी थी कल देर शाम ढले मैंने
हम दोनों के बीच पनपती तढ़प
खनकती हँसी के बीच आँखों की वो
अनकही सी, मेरे लिए तुम्हारी कसक
हसरते बचाती रही दामन चुपचाप
पयालियो की पैनी निगाहों से मगर
भुरती रही मुझ में वो तुम्हारी
मरमरी संगमरमर सी नजर
मानों नज़र को तुम्हारी अँधेरा
छिपाना आता है और फिर
चमकती रौशनी में मुझे चुराकर
खुद में मिलाना आता है .......
हम दोनों के बीच पनपती तढ़प
खनकती हँसी के बीच आँखों की वो
अनकही सी, मेरे लिए तुम्हारी कसक
हसरते बचाती रही दामन चुपचाप
पयालियो की पैनी निगाहों से मगर
भुरती रही मुझ में वो तुम्हारी
मरमरी संगमरमर सी नजर
मानों नज़र को तुम्हारी अँधेरा
छिपाना आता है और फिर
चमकती रौशनी में मुझे चुराकर
खुद में मिलाना आता है .......
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