मंगलवार, मार्च 14, 2017

एक और कहानी


चेहरे के पीछे छुपे हैं कुछ सपने
और सपनोंके साथ उभरती कुछ तस्वीरें
तस्वीरों में छुपी हैं कुछ यादें
और यादों में लिपटी हैं कुछ बातें
बातों में उलझते कुछ धागे और
धागों से बंधते कुछ रिश्ते
रिश्तों से पनपते नए बंधन
बंधन से बंधते कुछ अपने
और अपनों के संग डोर से
बंधे कुछ सांझे सपने, कभी
चेहरे के रंगों में झलकते और कभी
चेहरे की लकीरों में छुपते
सुनहरे टिमटिमाते नादाँ से सपने

शुक्रवार, मार्च 03, 2017

फिर से


चलो फिर से कुछ यादों को पिरोये
और मोतिया के फूलों की तरह
तकिये के सिरहाने रख कर
उनकी खुशबू को सहलाए
आँखों की गहराई में ढूंढे
या सिलवटो में समेटे
कितना कुछ है बिखरा हवा में
और कितने लम्बे हैं रास्ते
मगर उम्मीद की लौ है रोशन
कि फासले बनते है अक्सर
खुशबू की तरह बिखरने के लिए
नए रास्तों पर चल कर फिर से
तुमसे मिलने के लिए ..........

गुरुवार, मार्च 02, 2017

पानी


क्या कभी पानी को हथेली में उतरा है
और फिर उसे हौले से संभाला है
ताकि एक भी बूँद उसकी बिखर न जाये
जिंदगी भी कुछ ऐसी ही है पानी जैसी
कभी उस सुनहरे कांच के गिलास में सिमटी
तो कभी समुन्दर सी अथाह
खेलती है जिंदगी अक्सर पानी सा ही
कभी ठहराव तो कभी सैलाब
तलाश है लम्बी बहुत मगर
उम्मीद अभी भी है बाकी मुझे
कि पानी की भी एक कहानी है
मेरी तुम्हारी, हम सबकी जिंदगी से
हर दिन गुजरती एक रेल की रवानी है...........
और धुएं से लिखती जाती कि
इस पानी की भी कहानी है