मेरे कंधे के सिरे पर अभी भी निशाँ है तुम्हारे
और उंगलियों कि नरमी तुमसे मिलती
आँखे नादाँ सी करती हैं इंतजार और
दिल याद करता है तुम्हारा स्पर्श बार बार
क्यों याद आती है तुम्हारी ठगती आँखें
जबकि मुझ को भी पता है तुम हो मीलो दूर
मगर प्यार को नहीं पता दूरी क्या होती है
तुमसे मिलती और हवा में भुरती
सपनो के न मिलने कि मजबूरी क्या होती है
सोचती हूँ मैं काश मैं वक़्त पकढ़ लेती और
उसमे तुम्हे बांध कर सिरहाने रख लेती
ताकि खुशबू बिखरती रहे तुम्हारी
और तुम रमते रहो मुझ में ..............
और उंगलियों कि नरमी तुमसे मिलती
आँखे नादाँ सी करती हैं इंतजार और
दिल याद करता है तुम्हारा स्पर्श बार बार
क्यों याद आती है तुम्हारी ठगती आँखें
जबकि मुझ को भी पता है तुम हो मीलो दूर
मगर प्यार को नहीं पता दूरी क्या होती है
तुमसे मिलती और हवा में भुरती
सपनो के न मिलने कि मजबूरी क्या होती है
सोचती हूँ मैं काश मैं वक़्त पकढ़ लेती और
उसमे तुम्हे बांध कर सिरहाने रख लेती
ताकि खुशबू बिखरती रहे तुम्हारी
और तुम रमते रहो मुझ में ..............