मंगलवार, अप्रैल 28, 2015

तुम

तुम आओगे मेरे पास फिर से
मुझ को पता है तो फिर ये
आँख क्यों नम हो जाती है
तेरे जाने के बाद भी ये
उदासी की डोर क्यों मेरे
और करीब हो जाती है
रस्ते नापती हूँ मैं अक्सर
आसमान से सटी इमारतों में
या देखती हूँ उदास आँखों से
समुन्दर को तभी लहरे
तेरी याद दिला जाती हैं
और आँखों के किनारे से
कुछ बूंदे टपका जाती हैं
तुझे याद करते हुए और
ढलते सूरज को देखते हुये
इस इंतजार में की शायद
एक दिन तुम वापिस आओगे
और मेरी मुस्कराहट फिर से
मुझे दे जाओगे .............

इंतजार में हूँ मैं तुम्हारे

मंगलवार, अप्रैल 14, 2015

तुम्हारा मौन











तुम्हारा मौन देखो मुझे
प्यार से सहलाता है
कभी माथे से सटी लटे हटाता है, और
अगले ही पल उन लटों को
प्यार तले और उलझाता है ........
तुम्हारा मौन देखो मुझे
किस तरह तुम्हारे
प्यार में भिगो जाता है और
फिर अचानक प्यार की आंच में
अपने और करीब ले जाता है
तुम्हारा मौन देखो मुझे
कैसे किताब सा पढ़ लेता है
और फिर हर पन्ने पर
अपना नाम लिख जाता है
न जाने क्या है इस सवाल में
तुम्हारा मौन देखो कैसे
मौन से भी अपने
मुझे निरुतर कर जाता है

शुक्रवार, अप्रैल 10, 2015

चलो


चलो हम अपने निशान खोजे
और धागे में सपनों को पिरों दे
या मोतिये की सफ़ेद कलियों से
अपना तकिया महका दें और
सुबह की खुशबू में एक दुसरे को
उस तकिये की सिलवटों पर ढूंढे
मगर कैसा को अगर हम
इन सबसे अलग पानी सा
खुद को एक दुसरे में मिला दे
और महकते तकिये को अपनी
खुशबू में कुछ और लिपटा दें .....